संविधान का आर्टिकल 328, विधायकों अर्थात एक राज्य की विधानसभा को अमुक राज्य में ईवीएम को बंद करने की अनुमति देता है। . लेकिन किसी भी पार्टी ने अब तक अपने राज्य में ईवीएम को प्रतिबंधित नहीं किया। . ये सिद्ध करता है कि कांग्रेस -संघ-आप-सीपीएम इत्यादि सभी पार्टियाँ असल में ईवीएम समर्थक हैं।
आर्टिकल 328 कहता है--
"328. इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए और जहां तक संसद् इस निमित्त उपबंध नहीं करती है वहां तक, किसी राज्य का विधान-मंडल समय-समय पर, विधि द्वारा, उस राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के लिए निर्वाचनों से संबंधित या संसक्त सभी विषयों के संबंध में, जिनके अंतर्गत निर्वाचक-नामावली तैयार कराना और ऐसे सदन या सदनों का सम्यक् गठन सुनिाश्चित करने के लिए अन्य सभी आवश्यक विषय हैं, उपबंध कर सकेगा ।"
. आर्टिकल 328 विधायकों को राज्य चुनाव के ऊपर सम्पूर्ण नियंत्रण नहीं देता। लेकिन ये कहता है विधायक विधानसभा चुनावों कानून बना सकते हैं और ये संसद के बनाये गए कानूनों के विरुद्ध नहीं होने चाहिए। . लेकिन संसद ने ईवीएम को अनिवार्य नहीं किया है। उसने मात्र केंद्रीय चुनाव आयोग को ईवीएम इस्तेमाल करने का विकल्प प्रदान किया है। . लोक-प्रतिनिधित्व-अधिनियम-1951 में एकमात्र खंड जो ईवीएम के बारे में कहता है, . खंड-61क ,निर्वाचनों में मतदान मशीनें---इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों में किसी बात के होते हुए भी, मतदान मशीनों से ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, मत देना और अभिलिखित करना ऐसे निर्वाचन-क्षेत्र या निर्वाचन-क्षेत्रों में अंगीकार किया जा सकेगा जो निर्वाचन आयोग प्रत्येक मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, विनिर्दिष्ट करे । . अन्य शब्दों में, इसने "कर सकता है" शब्द का प्रयोग किया है। तो संसद ईवीएम के इस्तेमाल को बाध्यकारी बनाती। "ईवीएम का इस्तेमाल कर सकते हैं" शब्दों का यहाँ अर्थ है "ईवीएम उपयोग कर सकते हैं" या "उपयोग करने की जरुरत नहीं है" . इसीलिए यदि विधानसभा कानून बनाकर निर्वाचन आयोग को निर्देशित करें, तब निर्वाचन आयोग को बैलट पेपर उपयोग करना ही होगा और ईवीएम का इस्तेमाल रोकना होगा, ऐसे में विधानसभा संसद के किसी आदेश का उललंघन नहीं कर रही है। . और आर्टिकल 328 संसद को निर्वाचन नियम बनाने वाली पहली एजेंसी बनाता है और राज्य विधानसभा को दूसरी एजेंसी बनाता है और निर्वाचन आयोग को तीसरी एजेंसी जो संसद और विधानसभाओं के द्वारा बनाये गए कानूनों को निष्पादित करने के लिए कानून बनाती है। . तो राज्य विधानसभा अमुक राज्य में ईवीएम को समाप्त करने के लिए कानून बना सकती हैं। और राज्य विधानसभा ये सुनिश्चित करने के लिए भी कानून बना सकती है कि निर्वाचन आयोग ईवीएम में काले शीशे का इस्तेमाल ना करें और सिर्फ पारदर्शी कांच का ही उपयोग करे। . और यदि राज्य विधानसभा कानून बनती हैं, तो निर्वाचन आयोग को अमुक राज्य में ईवीएम का उपयोग बंद करना पड़ेगा अथवा इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में ले जाना होगा। लेकिन हक़ीक़त ये है -- कांग्रेस, आप, सीपीएम, टीआरएस, डीएमके, टीएमसी इत्यादि दल जिनके कुछ विधानसभाओं में बहुमत है, ईवीएम हटाने के लिए उनके राज्यों में कभी भी कानून नहीं बनाएं !!! . और यदि राज्य विधानसभा कानून बनाती हैं, तो निर्वाचन आयोग को अमुक राज्य में ईवीएम का उपयोग बंद करना पड़ेगा अथवा इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में ले जाना होगा। लेकिन हक़ीक़त ये है -- कांग्रेस, आप, सीपीएम, टीआरएस, डीएमके, टीएमसी इत्यादि दल जिनके कुछ विधानसभाओं में बहुमत है, ईवीएम हटाने के लिए उनके राज्यों में कभी भी कानून नहीं बनाएं !!! . यदि निर्वाचन आयोग मना भी करता है या मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में ले जाता है, ऐसे में तब राजनैतिक लाभ हो सकता था । . आम-आदमी पार्टी इस आर्टिकल 328 का प्रयोग करके दिल्ली विधानसभा चुनावों में ईवीएम को हटाने के लिए चाहे तो बिल प्रस्तावित कर सकती थी। और आम आदमी पार्टी के पास पंजाब और गोवा विधानसभा में अच्छा खासा प्रतिनिधित्व है इन दो राज्यों में निजी मेंबर ईवीएम हटाओ बिल लाने के लिए। लेकिन आम आदमी पार्टी कभी भी बिल लेकर नहीं आई। अन्य शब्दों में , आर्टिकल 328 की अनुपयोगिता ये सिद्ध कर देती है कि कांग्रेस-संघ-आप-टीसीएम-सीपीएम इत्यादि पार्टियां सभी ईवीएम की समर्थक हैं। . यदि आप कमेंट करना चाहते हैं, तो इस पोस्ट का उपयोग करें -- https://www.facebook.com/groups/MehtaRahulC/posts/665682427928619/