यदि किसी व्यक्ति न्यायालय द्वारा फांसी की सजा दी जा चुकी हो किन्तु सरकार उसे टॉर्चर करने के लिए जिन्दा रखना चाहती हो तो सरकार अमुक व्यक्ति को फांसी देने का नाटक करेगी। और जब इस तरह का ड्रामा स्टेज किया जाएगा तो परिवारजनों को शव नहीं दिया जा सकता !! क्योंकि शव देने के लिए वास्तव में फांसी देना जरुरी हो जाता है।
Operation Trojan Horse: Secret mission under which Bhagat Singh was allegedly shot dead
- अहिंसामूर्ती महात्मा भगत सिंह जी का शव उनके परिवार को कभी भी नहीं दिया गया था, न ही कानूनन उनका कोई पोस्टमार्टम किया गया और न ही कभी किसी ने उनका शव देखा !! कोर्ट द्वारा उनकी फांसी का दिन 24 मार्च तय किया गया था, किन्तु बिना किसी को बताए 23 मार्च को फांसी दे दी गयी। फांसी सुबह की जगह अँधेरे में रात 7:30 बजे दी गयी। जबकि क़ानून के अनुसार फांसी हमेशा सुबह दी जाती थी। फांसी के दौरान कानूनन मजिस्ट्रेट का उपस्थित होना आवश्यक था, किन्तु उन्हें फांसी देने के दौरान मजिस्ट्रेट मौजूद नहीं था। फांसी के बाद जेल कर्मियों ने जेल की पिछली दीवार में एक बड़ा छेद किया और वहां से वे शव को पुलिस वेन में डाल कर ले गए। लोगो के समूह ने लगभग 20 किमी तक उनका पीछा किया, और जब समूह वहां (सतलज नदी के किनारे) पहुंचा तो जेल कर्मी बोरी में से निकाले गए किसी शव के टुकड़ो को मिट्टी का तेल डालकर जलाने की कोशिश कर रहे थे। वस्तुत: जेलकर्मी वहां से भाग निकले। लोगो ने वहां जो शव के जो टुकड़े देखें उनमें चेहरा एवं धड़ वगेरह नहीं था। सिर्फ हाथ पैर के कुछ अधजले टुकड़े थे।लोगो ने इन क्षत विक्षत टुकड़ो को अहिंसामूर्ती महात्मा भगत सिंह जी का शव समझकर विधिवत दाह संस्कार कर दिया।
ऊपर जो विवरण दिए गए है यह सभी तथ्य रिकॉर्ड पर है।
- एक आदमी था - दलीप सिंह इलाहाबादी, जो कि जवाहर लाल के घर आनंद भवन में माली का काम करता था। यह आदमी गोरो का जासूस (an Intelligence Bureau Agent of British-India) एवं उनका वफादार था। इस आदमी के पोते कुलवंत सिंह कूनेर ने दलीप सिंह इलाहबादी द्वारा लिखे गए नोट्स के हवाले से जो पुस्तक Some Hidden Facts: Martyrdom of Shaheed Bhagat Singh लिखी है उसमें यह दावा किया गया है कि
अहिंसामूर्ती महात्मा भगत सिंह जी कि हत्या “ओपरेशन ट्रोजन हॉर्स” के तहत कि गयी थी। और उन्हें फांसी द्वारा नहीं, बल्कि बंदूक की गोली द्वारा मारा गया था। सांडर्स के परिवार जनों ने लार्ड इरविन से भगत सिंह जी कि जान का सौदा किया था। समझौते के तहत गवर्नर जनरल ने सांडर्स के परिवार को यह अनुमति दी थी कि वे भगत सिंह जी को खुद अपने हाथो से गोली मार सकते है। समझौते के तहत 23 मार्च 1931 को सांडर्स के परिवार जनों को जेल में बुलाया गया और उन्होंने अपने हाथों से भगत सिंह जी को गोली मारी थी।
- Bhagat Singh death shocking secret revealed-India TV News. A strong mystery is still around that whether Bhagat Singh was shot dead or hanged. To know more about it read India TV News. https://www.indiatvnews.com/news/india/mystery-unresolved-was-bhagat-singh-shot-dead-or-hanged-48861.html
- हमें लगता है कि दलीप सिंह इलाहबादी का वर्जन पूरी घटनाओं का खुलासा नहीं करता। दरअसल सांडर्स परिवार ब्रिटेन का काफी समृद्ध एवं प्रभावशाली परिवार था। और वे अपना बदला लेने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों को काफी मोटी कीमत चुकाने को तैयार थे। एक प्रबल सम्भावना यह है कि उनकी एवं ब्रिटिश अधिकारीयों कि मंशा उन्हें जिन्दा रखने की रही हो, ताकि भगत सिंह जी को वर्षो तक यातनाएं दी जा सके। जैसा कि उन्होंने राष्ट्रपिता अहिंसामूर्ती महात्मा सुभाष चन्द्र बोस के साथ किया था। तो उन्होंने किसी अन्य कैदी के शव को क्षत-विक्षत करके यह भुलावा दिया कि यह भगत सिंह जी का शव है, और अगले दिन पेड मीडिया को यह रिपोर्ट कर दिया गया की भगत सिंह जी को फांसी दे दी गयी है।
यदि गोरो को धांधली नहीं करनी होती तो भगत सिंह जी के परिवार के सीमित सदस्यों उपस्थिति में प्रशासन परिसर में उनका दाह संस्कार किया जा सकता था।